Wednesday, 11 July 2012

निजी स्कूल बनाम सरकारी स्कूल


 6 साल से 14 साल के सभी बच्चो को स्कूल नसीब होगा ,ये अच्छी खबर है. बच्चो के लिए शिक्षा का कानून ,सरकार ने देश के सामने रखा .सबने खूब जश्न मनाया. सभी को अपने बच्चो को पड़ने की उम्मीद जगी और सपने देखने लगे . मुफ्त व् अनिवार्य शिक्षा माने 6 से 14 साल तक के सभी बच्चो को शिक्षा . ये कानून लोगो को अँधेरे में रख रहा है . 25 प्रतिशत गरीब बच्चो को निजी स्कूल में पढ़ने को मिलेगा गरीब आदमी खुश हुआ की कम से कम हमारा बच्चा बड़े स्कूल में पड़ेगा . हकीकत कुछ और ही थी. सरकार ने 25 प्रतिशत बच्चो को निजी स्कूल में प्रवेश की बात कही और पुरे देश का ध्यान 25 प्रतिशत की तरफ कर दिया , बाकि बचे बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़े, उन बच्चो को अच्छी शिक्षा की जरुरत नही है . और हमारे पत्रकार भी कम नही है वो भी नहा धो कर निजी स्कूल के पीछे पड़ गए ,सरकार की क्या मन्श है वो जान ही नही पाए .हाल की ताजा घटना है की मध्य प्रदेश के इन्दोर में 34 सरकारी स्कूल बंद कर रहे है कारण , बच्चे नही आ रहे है. बही सरकार तो यही चाहती है की बच्चे नही आये और स्कूल बंद हो. बंद स्कूल होगे तो जगह होगी जो आमिर लोगो के हाथ में बेच कर खुद का और उन आमिर लोगो का भी फायदा होगा .स्कूल की जगह पर मोल बना कर पैसा बनाया जायेगा और सरकारी स्कूल ख़त्म कर दिए जायेगे .मेरी पत्नी से काम के सन्दर्भ में चर्चा कर रहा था तो उसने बताया की इस बार एक सरकारी स्कूल में इस साल  एक भी प्रवेश नही हुआ . मेने कहा होगा भी कैसे जब तक निजी स्कूल है सरकारी की तरफ कोन  जाना चाहेगा और सरकार भी तो यही चाह रही है .

1950 से   मुफ्त व् अनिवार्य शिक्षा की बात की जा रही थी. उस समय भी 14 साल पर अटके थे और आज भी वही तक रही. 14 साल के ऊपर के बच्चो के माता पिता पढाई का खर्च उठाने में शायद  सक्षम है , या बे बच्चे पढ़े  या ना पढ़े .उस समय 14 साल के पीछे कुछ तर्क रहा होगा .62 साल हो चले है मगर हमारे देश के नेताओ की शायद अक्ल नही आई, आती भी कैसे उनकी बच्चे थोड़ी सरकारी स्कूल में पढ़ रहे है जो उन्हें चिंता हो.सरकारी स्कूल में शिक्षक तो होगे मगर पड़ी के तरीके क्या होगे पता नही.

मुफ्त व् अनिवार्य शिक्षा कानून में कुछ बुरा है तो थोडा बहुत अच्छा भी नजर आया जैसे अब बच्चो को मार का डर नही रहेगा और न फेल होने का 100 या 150 पर 1 शिक्षक नही होगा , स्कूल  में पानी , खेल का मैदान, बच्चो के लिए पुस्तकालय होगा. कुछ विदवानो का कहना है की जितना मिला उतने में ही कुश होना चाहिय नही तो वह भी हाथ से चला जायेगा. उन विद्वान को ये नही पता की बच्चो की उनका अधिकार दिया जा रहा है भीख नही, की इन्ते में ही खुश हो जाओ वो सरकार का गुणगान इसलिये गा रागे थे की वे भी कानून बनाने के समुह में शामिल थे तो जाहिर सी बात है वे तो गुणगान करेगे ही .
   

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